पीपल के पत्तों पे जो खत लिखे थे शायर ने, बेमौसम पतझड़ में कहीं खो गये। सोचा कि फ़िर लिखेंगे खत जब लौट आएंगे पत्ते, मगर पीपल कोई काट गया था। खोली वही किताब जो कभी मिलकर लिखी थी, मिला नहीं कोई खत मगर, एक सूखा पत्ता ज़रूर मिला। लगा हूँ अब मैं पात पे वाकये बुनने, तो अब सिलसिला-ए-अश्रुपात शुरू हुआ।